तलाश





आज कल‌ रातें कुछ ज़्यादा लंबी हो गई हैं। चांद को ढलते देखना मेरे लिए आम हो चुका है और नींद ने भी शायरी की तरह मेरा हाथ छोड़ दिया है।एक लंबे समय तक मेरे कान मेरी ख़ुद की आवाज़ सुन ने को तरस जाते हैं। लग रहा है जैसे जीवन अपने चक्र के किसी एक बिंदु पर आकर अटक चुका हो। आंखें बंद करता हूँ तो मुझे मेरे अंदर की ख़ामोशी चीखती चिल्लाती नज़र आती है और मैं बेबस-लाचार पड़ा अपने ही मन के किसी कोने की दीवार खुरचता हुआ पागल सा जान पड़ता हूँ। मस्तिष्क अपने ही बोझ तले दब कर मरा जा रहा है। मुझे इस जीवन चक्र के अंत की तलाश है। मुझे ख़ुद की तलाश है।

-तुम्हारा "स्पर्श"...

#मेरी_कहानी_वाला 🍂

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